Sarakari Yojana: राजस्थान सरकार ने एक सराहनीय पहल करते हुए राज्य के लघु और सीमांत किसानों को पारंपरिक खेती की ओर वापस लाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है।
इस Sarakari Yojana के तहत अब उन किसानों को 30 हजार रुपए प्रतिवर्ष की सहायता राशि दी जाएगी जो बैलों से खेती करते हैं। आधुनिक यंत्रों और ट्रैक्टरों के उपयोग से भले ही बैलों की संख्या में कमी आई हो लेकिन इस योजना से एक बार फिर खेतों में बैलों की हलचल दिखाई दे सकती है।
मशीनीकरण के दौर में बैलों की खेती को मिलेगा नया जीवन
पिछले दो दशकों में खेती में आधुनिकता की तेज रफ्तार ने बैलों की उपयोगिता को लगभग समाप्त कर दिया था। ट्रैक्टर और अन्य यांत्रिक संसाधनों के कारण न केवल संपन्न किसान, बल्कि सामान्य किसान भी बैलों से खेती करना छोड़ चुके हैं।
परिणामस्वरूप बैल धीरे-धीरे ग्रामीण कृषि परिदृश्य से गायब होते जा रहे थे। लेकिन सरकार की यह नई Sarakari Yojana बैलों को फिर से खेती के केंद्र में लाने की कोशिश कर रही है।
पहाड़ी इलाकों में अब भी जीवित है पारंपरिक खेती की परंपरा
प्रतापगढ़ जिले के पहाड़ी क्षेत्रों में अभी भी कुछ किसान ऐसे हैं जो बैलों से खेत जोतते हैं। हालांकि इनकी संख्या बहुत कम रह गई है।
किसानों के अनुसार करीब 20 साल पहले तक गांवों में हर घर में बैलों की जोड़ियां आम दृश्य थीं। लेकिन सिंचाई के यंत्रों की सुलभता और समय की बचत की सोच ने किसानों को बैलों से दूरी बना दी।
गोवंश और पारंपरिक कृषि को मिलेगा बढ़ावा
इस योजना के लागू होने से न केवल खेती का पारंपरिक स्वरूप वापस आएगा बल्कि गोवंश की उपयोगिता भी फिर से बढ़ेगी। आज जिन बछड़ों को लोग चारे के बोझ के कारण छोड़ देते हैं वही बैल बनकर खेती में सहायक बन सकते हैं।
किसानों का कहना है कि यह सहायता राशि भले ही बड़ी न हो लेकिन यह प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि जैसी अन्य योजनाओं की तरह लघु किसानों के लिए एक बड़ा सहारा साबित हो सकती है।
ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया और पात्रता
राजस्थान सरकार की इस Sarakari Yojana के अंतर्गत वही किसान आवेदन कर सकते हैं जिनके पास बैलों की जोड़ियां हैं और जो अभी भी उनसे खेती कर रहे हैं।
आवेदन के लिए बैलों की बीमा टैगिंग, स्वास्थ्य प्रमाण पत्र और अन्य दस्तावेजों की जरूरत होगी। इच्छुक किसान कृषि विभाग की वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं या नजदीकी कृषि कार्यालय से संपर्क कर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
खेती में आत्मनिर्भरता और परंपरा को साथ लाने वाली पहल
यह योजना सिर्फ आर्थिक सहायता तक सीमित नहीं है बल्कि यह एक सांस्कृतिक पुनरुत्थान का प्रयास भी है। बैलों की घंटियों की आवाज़, मिट्टी की सोंधी खुशबू और खेतों में हल चलाते किसान ये सब फिर से ग्रामीण जीवन का हिस्सा बन सकते हैं।
सरकार की यह पहल निश्चित रूप से परंपरागत खेती के पुनरुद्धार और आत्मनिर्भर किसान समाज की ओर एक सकारात्मक कदम है।